उस दिन भी वे सारा दिन लारी पर सुनसान शहर की कोने-कोने का
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सरकाघाट रात के सन्नाटे में सुनसान शहर के बीचोंबीच स्थित एक निजी गेस्ट हाउस!
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सुनसान शहर की चीख आज शहर सुनसान बड़ा है, आज नगर खामोश खड़ा है, चुप हैं गलियाँ, चुप हैं सड़कें, चुप सारे दरो-दीवारें हैं, लगता है जैसे कि किस्मत के सारे मारे हैं।
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उस दिन भी वे सारा दिन लारी पर सुनसान शहर की कोने-कोने का चक्कर लगाकर पचास दंगाग्रस्त इनसानों को कैम्प में पहुंचाकर सुरक्षित कर चुका था और सारे दिन का थका-हारा पुलिस-चौकी पर लारी से उतरकर घर जाने के लिए पैदल चल रहा था।